रूस पर भारत का साथ चाहता है अमेरिका, 3 महीने में दो अधिकारी पहुंचे भारत
इससे पहले मार्च में इसी मकसद के साथ भारतीय मूल के अमेरिकी उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह भारत आए थे। उन्होंने उस समय कहा था कि प्रतिबंधों को खत्म करने वाले देशों को परिणाम भुगतना होगा जबकि तेल खरीद वर्तमान में प्रतिबंधों के अधीन नहीं हैं।

रूस के खिलाफ अपने प्रतिबंधों के समर्थन में भारत को साथ लाने के लिए अमेरिका ने एक बार फिर अपने वरिष्ठ अधिकारी को भारत भेजा है ताकि वाशिंगटन में बैठी सरकार भारत की तेल खरीद और रुपये-रूबल भुगतान तंत्र का उपयोग करने की योजना पर चर्चा कर सके। इससे पहले मार्च में इसी मकसद के साथ भारतीय मूल के अमेरिकी उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह भारत आए थे।
आतंकवादी वित्तपोषण और वित्तीय अपराध के लिए अमेरिकी सहायक सचिव एलिजाबेथ रोजेनबर्ग भारत आई हैं। रोजेनबर्ग की मुंबई में भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारियों के साथ बैठक है। इसके अलावा वह दिल्ली में वित्त मंत्रालय, गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के साथ भी मुलाकात करेंगी। रोजेनबर्ग जून में होने वाली फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के सत्र पर भी चर्चा करेंगी, जहां पाकिस्तान की ग्रे लिस्टिंग की समीक्षा की जाएगी। इसके अलावा वह रूस के खिलाफ संभावित उपायों पर चर्चा कर सकती हैं।
अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता के अनुसार रोजेनबर्ग की यात्रा यूक्रेन के खिलाफ युद्ध के लिए रूस पर लगाए गए अभूतपूर्व बहुपक्षीय प्रतिबंधों और निर्यात नियंत्रणों के कार्यान्वयन और प्रवर्तन के आसपास भागीदारों और सहयोगियों के साथ जुड़ने के लिए एक निरंतर ट्रेजरी प्रयास का हिस्सा बताया है। यह यात्रा टोक्यो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की मुलाकात के एक दिन बाद हुई है जहां दोनों नेताओं ने कई समझौतों की घोषणा की थी।
हालांकि नई दिल्ली और वाशिंगटन में बैठी सरकारें यूक्रेन में रूस की कार्रवाइयों पर गहरा मतभेद बनाए हुए है। दरअसल भारत ने अपने किसी भी बयान में मास्को की आलोचना करने या उसका नाम लेने से इनकार कर दिया है। रूसी सेंट्रल बैंक और आरबीआई के अधिकारियों के बीच भी कम से कम दो दौर की बातचीत हुई है। अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के कारण दोनों देशों के बीच व्यापार को स्थिर करने और युद्ध शुरू होने के बाद से रूस से तेल की खरीद में वृद्धि हुई है।
इसके अलावा भारतीय रिफाइनर ने युद्ध के पहले दो महीनों में 40 मिलियन बैरल रूसी तेल के ऑर्डर दिए हैं जो पूरे 2021 के आंकड़े से दोगुने से भी ज्यादा है। भारतीय अधिकारियों ने यह भी समझाया है कि रुपया-रूबल तंत्र वर्षों से अस्तित्व में है और इसे कभी भी नष्ट नहीं किया गया है।