अपने-लोग: किचन से राष्ट्रपति भवन की यात्रा, चुनौतियों को यूं किया पार 'मनीषी' मृदुल ने
डॉ. मृदुल अपने इस ज्ञान अपने तक सीमित नहीं रखना चाहती थीं। उन्हें इस बात का अहसास था कि संस्कृत की क्लिष्टता लोगों को महान ग्रंथों से दूर कर देगी, इसलिए उन्होंने हिंदी में इनका अनुवाद करने का फैसला किया।

'भाषा बोलने से जीवंत रहती है और जो बोली नहीं जाती वह धीरे-धीरे लुप्त हो जाती है।' इंडियन स्टार की रिपोर्टर से अपने संवाद की शुरुआत प्रख्यात भाषाविद, साहित्यकार, वेद और उपनिषद की अनुवादक डॉ. मृदुल कीर्ति इन्हीं पंक्तियों से करती हैं। उनका इंटरव्यू करना जैसे हिंदी भाषा के समुद्र में गोते लगाना है और जैसे-जैसे इंटरव्यू समाप्त होता है, एक पत्रकार के हिस्से में हिंदी भाषा की कई सीपियां जमा हो जाती हैं। ऑस्ट्रेलिया बस चुकीं डॉ. मृदुल की जड़ें भारत में गहरी जमी हुई हैं और खुद उनके शब्दों में कहें तो 'अगर इंसान अपनी जड़ों से जुड़ा हो तो विदेश में रहने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता।'
डॉ. मृदुल की यही सादगी और सरलता उन्हें कइयों से अलग बनाती है और इसलिए वेद व उपनिषदों के जानकारों की नजरों में उनके लिए विशेष सम्मान है। उनकी लेखनी के प्रशंसक केवल भाषाविद ही नहीं बल्कि कभी भारत के दिवंगत राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा और दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी रह चुके हैं और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हैं जिन्होंने 2017 में हिंदी में अनुवादित पतंजलि योग दर्शन का विमोचन किया था। बता दें कि इस किताब को मध्य प्रदेश के स्कूली पाठ्यक्रम से जोड़ा जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर भारत की एक सशक्त बेटी का हुआ साक्षात्कार नीचे पढ़ें